भारतीय संविधान एवं पंथनिरपेक्षता/धर्मनिरपेक्षता (Indian Constitution & Secularism)


 
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता एवं पंथनिरपेक्षता को अंगीकार किया है। सबके लिए सामान धार्मिक स्वतंत्रता के विचार को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य नें राज्य और धर्म को एक – दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है।  भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता प्रदान करना ही धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है।

भारत जैसे विविध धार्मिक देश में किसी एक विशेष धर्म को विशेष स्थान देना उचित नहीं था। इस कारणवश भारतीय विद्वानों ने धर्म निरपेक्षता के मूल्यों का स्वीकार किया। भारतीय संविधान की विभिन्न धाराओं में धर्मनिरपेक्षता के तत्व संम्मिलित है। भारतीय समाज को धर्मनिरपेक्ष बनाने में भारतीय संविधान ने निम्नवत भूमिका हासिल की है।


  • भारतीय संविधान में 1976 के 42 वे संशोधन के अनुसार संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार किया गया।
  • भारतीय संविधान की धारा 15 एवं 16 धार्मिक भेदभाव अमान्य किया है।
  • धारा 23 के अनुसार राज्य द्वारा आर्थिक अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में से धार्मिक शिक्षा की अनिवार्यता अमान्य की गई है।
  • धारा 25 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के पालन की आझादी प्रदान करता है। किसी भी धर्म को मानना, आचरण में लाना एवं प्रसार करना आदि की अनुमति होगी।
  • संविधान की धारा 25-28 में विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान की है। अर्थात भारतीय समाज को अपने धर्म में विश्वास एवं उपासना का स्वतंत्रता की अनुमति है।
  • धारा 28 के अनुसार सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। किन्तु विद्यार्थियों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा न देने वाले विद्यालयों को राज्य अनुदान देते रहेगा। उक्त सुझावों के अनुसार ही सरकारी एवं निजी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा दी जाएगी।
  • धारा 29 (2) के अनुसार धर्म, वंश, जाति, भाषा के आधार पर राज्य द्वारा पोषित सहायता से वांछित नहीं किया जा सकता।
  • धारा 30(1) के अनुसार धर्म एवं भाषा के आधार पर अल्पसंख्याक वर्गों को शिक्षा संस्थाओं का स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
  • धारा 30 (2) के अनुसार भाषा, धर्म, अल्पसंख्यांक के आधार सहायता के संदर्भ में भेदभाव नहीं करेगा। भारतीय संविधान के अंतर्गत मुलभुत अधिकारों का पालन किया जायेगा।
  • धारा 325, 350, 352 के अनुसार धर्म के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की निर्मिती पर विरोध किया है। भारतीय उच्चतम न्यायालयों ने अनेक न्यायालयीन निकालों में धर्मनिरपेक्षता का पुरस्कार किया है।
  • सारांश रूप से कहा जा सकता है की भारतीय संविधान के विविध धाराओं में धर्मनिरपेक्षता के तत्व सम्मिलित है। धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ, एक ऐसा राज्य जिसमे सभी धर्मो से समान बर्ताव करे। राज्य धर्म के संदर्भ में पूर्णत: तटस्थ रहेगा एवं किसी धर्म में हस्तक्षेप न करते हुए सभी धर्मों को समान संरक्षण प्रदान करेगा। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा एवं राज्य के नीति निर्धारण में सभी धर्मों को समान महत्व देगा।

 By: Dhirendra Pratap Singh

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