आत्महत्या का मुख्य कारण- आत्म अवसाद या बाह्य परिस्थितियाँ


कुछ समय पहले, दूर के एक रिश्तेदार के आत्महत्या की खबर सुनी है तब से अंदर भूचाल सा चल रहा है। अगर इंसान की खुशी नाम, पैसा, शोहरत, पद, प्रतिष्ठा, कामयाबी में है तो वह ऐसा कदम उठा नहीं सकता था क्योंकि उसके पास यह सब था वह भी खुद की दम पर कमाया हुआ और अगर इन सब में खुशी नहीं है तो असली खुशी किस चीज में हैं?? हमें कामयाबी की कोई नई परिभाषा बनानी होगी। हमें यह समझना होगा कि वह क्या कमी रह जाती हैं जो जिंदादिल और कामयाब आदमी को भी आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर कर सकती है। 

यह कह देना बहुत आसान है कि आत्महत्या बुजदिली का काम है क्योंकि वो है भी। पर यह समझना होगा कि कोई भी इंसान आत्महत्या जैसे निर्णय तक पहुंचा कैसे? वह कोई एक पल में लिया गया निर्णय नहीं हैं उससे पहले वह एक लंबी विचार प्रक्रिया मानसिक अवसाद से गुजरता है। हमें खुलकर मानसिक स्वास्थ्य, अवसाद के बारे में बात करनी होगी मानसिक स्वास्थ्य को भी उतनी ही गंभीरता से लेना होगा जितना हम शारीरिक स्वास्थ्य को लेते हैं। 

भारतीय समाज में अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा अवहेलना की जाती है तो वह मानसिक स्वास्थ्य। क्योंकि किसी भी मानसिक दशा को लोग पागलपन का नाम दे देते हैं जिससे परेशान व्यक्ति को अपनी बात रखने में कठिनाई महसूस होती है कि समाज कहीं उसे पागल न समझ ले हमें यह समझना होगा कि हर मानसिक परेशानी पागलपन नहीं होती। हमें अपने परिवार, दोस्तों, करीबियों से बात करने का समय निकालना होगा उनकी बात सुनने, अपनी बात कहने, अपने मन की व्यथा बताने को आसान बनाना होगा हमें अपने मन, विचार, भावनाओं को समझना होगा और साथ ही अपने करीबियों के विचारों और भावनाओं को भी समझना होगा हमें उन्हें बताना होगा की इस कठिन समय में वे अकेले नहीं है। 

ध्यान (मेडिटेशन), योगा को अपनी दिनचर्या में लाना होगा अपनों के पास बैठने के लिए समय निकालना होगा उनके दिल की बात सुननी होगी अपने दिल की बात सुनानी होगी। सिर्फ परिवर्तन ही शाश्वत है यह समझना होगा और समझाना भी होगा जो आप आज महसूस कर रहे हो, हो सकता है कल वैसा महसूस नहीं करें। इसलिए इस सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से थोड़ा बाहर आकर थोड़ा समय अपनों के साथ बिताएं। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहे और अपने आसपास के लोगो को भी करे।

हमारे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में अकेलेपन, अवसाद और आत्‍महत्‍या के मामले बढ़ रहे हैं। बल्कि यूं कहना ठीक होगा कि आत्‍महत्‍या एक महामारी का रूप धरती जा रही है। लोग कई वजहों से आत्‍महत्‍या करते हैं, ऐसे में अगर उन्‍हें समय रहते पेशेवर सहायता मिल जाए, दोस्‍त-परिवार वाले उनकी मदद करें तो हम आत्‍महत्‍या के मामलों को कम कर सकते हैं। पिछले साल दुनियाभर में आठ लाख लोगों ने आत्‍महत्‍या की और हमारे देश में 1,64,033 ने आत्‍महत्‍या करके अपनी जान गंवाई। अब भी दुनियाभर में हर साल आत्‍महत्‍या से लगभग 10 लाख लोग जान गंवाते हैं, जो युद्ध या अन्‍य हिंसक मौतों का लगभग 50 प्रतिशत है। शायद यही वजह है कि आत्‍महत्‍या के प्रति जागरूक करने के लिए दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को विश्‍व आत्‍महत्‍या रोकथाम दिवस मनाया जाता है।

विश्‍व आत्‍महत्‍या रोकथाम दिवस क्‍यों मनाया जाता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 100 में से 1 मौतें आत्महत्या के कारण होती हैं। शायद यही कारण है कि विश्व सुसाइड प्रिवेंशन डे को 10 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम एसोसिएशन द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से दुनिया भर में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या को रोकने और लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। विश्व सुतली रोकथाम दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य आत्महत्या के बारे में जागरूकता बढ़ाना और विश्व स्तर पर आत्महत्या की संख्या और इसके प्रयासों को कम करना है। इसके साथ ही, इसे रोकने के लिए निवारक उपायों को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार हर सेकंड कोई ना कोई व्यक्ति ख़ुदकुशी करने की कोशिश करता है, और हर 40 सेकंड में कोई ना कोई व्यक्ति आत्‍महत्‍या करता है। इस तरह दुनियाभर में हर साल तकरीबन 10 लाख़ लोग आत्‍महत्‍या कर लेते हैं।

ऐसे में यह दिवस आत्मघाती विचारों से मुकाबला करने, अपनी और दूसरों की सहायता करने, उन्हें इससे बाहर निकालकर इन आंकड़ों को कम या खत्म करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

लोग आत्‍महत्‍या करते ही क्‍यों हैं?

यह कल्पना करना मुश्किल है कि एक दोस्त, परिवार के सदस्य या सेलिब्रिटी ने आत्महत्या करने के लिए क्या प्रेरित किया। हो सकता है कि कोई स्पष्ट चेतावनी संकेत न हो, और आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि आपने किन संकेतों को अनदेखा किया है। अक्सर, एक व्यक्ति कई कारकों के कारण अपना जीवन लेने का फैसला करता है।

ज्यादातर लोग आत्महत्या करने की योजना बनाने के बजाय कुछ समय पहले ऐसा करने का फैसला करते हैं। कई कारक उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं, लेकिन अवसाद इन प्रमुख कारणों में से एक है। लोग अवसाद के साथ भावनात्मक और निराशाजनक महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि अब उनके पास रहने का कोई कारण नहीं है। ऐसी स्थिति में, यह महत्वपूर्ण है कि अवसाद का इलाज समय में किया जाना चाहिए और पेशेवर डॉक्टरों से सहायता ली जानी चाहिए। इसके अलावा, लोग मानसिक संतुलन खो देते हैं और किसी भी तरह के झटके के कारण आत्महत्या के कदम उठाते हैं।साथ ही, नशा और भावावेग भी आत्‍महत्‍या का कारक बनते हैं। ड्रग और अल्‍कोहल पहले से आत्‍महत्‍या के विचारों का सामना कर रहे व्‍यक्ति को ऐसा करने के लिए भावावेग प्रदान करते हैं और उनका डर खत्‍म कर देते हैं। 

अवसाद और अन्‍य मनोविकारों से ग्रस्‍त लोग अक्‍सर शराब और ड्रग्‍स का सहारा लेते हैं जो उनकी स्थिति को और बिगाड़ देता है। पारिवारिक कलह, बेरोज़गारी, तलाक, प्रेम में विफलता, गरीबी, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य आदि के कारण भी लोगों को लगता है कि आत्‍महत्‍या के अलावा कोई विकल्‍प ही नहीं है। हालॉंकि यह तात्‍कालिक होता है। आत्‍महत्‍या की भावना कोई स्‍थायी भावना नहीं होती और हर भावना की तरह समय के साथ खत्‍म हो जाती है। लेकिन ऐसे विचार आ रहे हों, तो वे क्षण नाजुक होते हैं। उन पलों में पेशेवर सहायता मिल जाए तो व्‍यक्ति उस स्थिति‍ से निकल कर उस कठिन दौर का सामना करने के काबिल बन सकता है।

अन्त में मुझे हिन्दी के इस दौर के लोकप्रिय कवि कुमार विश्वास जी की दो पंक्तियाँ याद आतीं है -

“बात करो रूठे यारों से सन्नाटों से डर जाते हैं
प्यार अकेला जी सकता है दोस्त अकेले मर जाते हैं”

 By: Rishabh Pandey

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