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गांधी जी का कथन रहा है ‘’ऑंख के बदले ऑंख की मानसिकता रखी जाए तो संपूर्ण विश्व के लोग अंधे हो जाएंगे"। उपर्युक्त कथन से गांधी जी ने यह बताना चाहा कि विश्व में शांति के लिए युद्ध एक कमजोर साधन हो सकता है।
इतिहास में महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण
ने अर्जुन को शांति स्थापित करने के लिए युद्ध को आवश्यक बताया था । परंतु
वर्तमान परिदृश्य में रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल फिलीस्तीन युद्ध आगे चलकर क्या
शांति स्थापित कर सकते हैं ? अशोक ने अपने शासनकाल में कलिंग युद्ध की मेजबानी की
थी और लाखों लोग इस भीषण युद्ध में मारे गए थे । इस युद्ध के पश्चात् अशोक को
ज्ञात हुआ अगर राष्ट्र का विकास एवं उसे मानवता प्रेमी बनाना है । इसके लिए युद्ध
के स्थान पर धम्म की नीति बेहतर होगी और धम्म घोष की नीति को अशोक ने अपनाया।
विश्व में भी ब्रिटेन एवं फ्रांस के बहुत से
युद्ध हुए जिसका कारण साम्राज्यवाद या उपनिवेशवाद थे । लेकिन अंत में युद्ध से क्या
हासिल हुआ यह सोचने एवं विचार करने की बात है जहां वर्तमान में यूरोपीय यूनियन
संस्था के रूप में विकसित हुई उसी प्रकार प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व
युद्ध के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई । संयुक्त राष्ट्र का
मुख्य उद्देश्य युद्ध के स्थान पर शांतिपूर्ण हल निकालना था।
युद्ध किसी भी युग में हुआ हो उसका शिकार राष्ट्र
का सबसे कमजोर तबका होता है । जो कि पूंजीवादी देश या समाजवादी देश के सबसे निचले
पायदान का व्यक्ति होता है । गरीबी, बीमारी, भूखमरी इन
सभी से राष्ट्र का विकास अवरोधित होना एवं जन-धन की हानि एवं समाज को नकरात्मक
रूप से प्रभावित करती है । सामाजिक प्रभावों की बात करें तो हम नैतिक मूल्यों को
कैसे पीछे छोड़ सकते हैं युद्ध हमें नैतिक से एक हिंसा एवं क्रूरता की तरफ ढकेलता
है । नैतिकता में राष्ट्रप्रेम देशभक्ति के मूल्य भी आते हैं । लेकिन इसका
दुरूपयोग समय-समय पर कई शासकों ने अपने हितों के लिए किया जैसे नाजीवाद हो या
फासीवाद, समाजवाद
में लेनिन तथा साम्यवाद में माओ जेडांग सब ने नैतिकता में देशभक्ति के लक्ष्यों
को सर्वश्रेष्ठ बताकर हमें हिंसा, अशांति, भेदभाव, अत्याचार
को सही ठहराने का काम किया । युद्ध अपने साथ एक बड़ी आर्थिक त्रासदी भी लेकर आती
है ।
युद्ध में पैसा पानी की तरह और उत्पाद में कमी आती है जिससे राष्ट्र कमजोर
हो जाता है । आर्थिक रूप से प्रभाव जहां राष्ट्र को आंतरिक के साथ-साथ बाह्य दबाव
भी देखना पड़ता है । वर्तमान उदाहरण साफ तौर पर देख सकते हैं कि किस प्रकार
रूस-यूक्रेन के युद्ध में रूस पर आर्थिक पाबंदी में देश के अंदर महंगाई को बढ़ा
दिया है वहीं दूसरी ओर यूक्रेन में हजारो करोड़ डॉलर के बुनियादी संरचनाओं का
नुकसान ने देश को बीस-पच्चीस वर्ष पीछे ढकेल दिया है।
युद्ध अतीत में हुआ हो या वर्तमान में या
भविष्य में, यह अपने साथ प्रलय ही लेकर आता है जिसका परिणाम
संपूर्ण मानव सभ्यता समाज और राष्ट्र को भुगतना पड़ता है । इसको लेकर हमें मिलकर
काम करने की जरूरत है । हिंसा से कभी शांति प्राप्त नहीं की जा सकती जो सिर्फ
आपसी समझ से प्राप्त होती है । वैश्विक सुधार एवं शांति के उद्देश्यों को लेकर
सभी को आगे आने की जरूरत है । शांतिपूर्ण कल बनाने के लिए भारत एवं हमारे भारतीय
मूल्यों का योगदान अतुलनीय हो सकता है । और यह युद्ध को हमेशा के लिए कमजोर उपकरण
के रूप में अंतिम विकल्प के रूप में स्थापित करेगा।
By: Kamlesh Sinha
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