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बौद्ध धर्म का उत्थान:- बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध के समय से ही उत्तर भारत में लोकप्रिय था । इसकी सफलता के पीछे महात्मा बुद्ध व तात्कालीन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कारक मुख्य रूप से उत्तरदायी थे।
1.बौद्ध धर्म के प्रसार में स्वयं महात्मा बुद्ध का प्रभावशाली व्यक्तित्व उत्तरदायी था इन्होंने उत्तर भारत के विभिन्न महाजनपदों में घूम-घूम कर सामान्य जनता के बीच उपदेश दिये इनके उपदेश अत्यंत सरल एंव सुग्राही थे । इन्होंने वर्णभेद को नहीं माना तथा अमीर-गरीब, ब्राम्हण-शूद्र सभी जाति के वर्गों के लोग इनके उपदेशों को श्रवण कर सकते थे। बुद्ध मानव समानता में विश्वास रखते थे। महात्मा बुद्ध ने पाली भाषा में उपदेश दिये जिससे जन सामान्य आसानी से समझ सके। जबकि ब्राम्हण साहित्य क्लिष्ट संस्कृत में होने के कारण सभी के समझ में नहीं आते थे । भाषा की सुगमता ने भी बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाया । वैदिक सूत्रों में हजारों कृषि में प्रयोग होने वाले पशुओं की बलि दी जाती थी जो नवीन कृषि प्रणाली में बाधक थी , इनका विरोध बौद्ध धर्म में हुआ।
ब्राम्हण धर्म की क्रियाविधि अनुष्ठान अत्यन्त कठोर थे साथ ही अत्यधिक धन की आवश्यकता थी जिसे केवल कुलीन वर्ग ही संपादित करा सकता था। इसके विपरीत बौद्धधर्म के अनुपालन में किसी भी व्यय की आवश्यकता नहीं थी। बौद्ध धर्म में केवल नैतिकता एवं ईश्वर-आत्मा, यज्ञ, पुरोहित की भूमिका आदि को समाप्त कर सच्चरित्रता पर बल दिया । जिससे अधिक से अधिक लोग इसकी तरफ आकर्षित हुये।
2. ब्राम्हण धर्म की कर्मकाण्डीय व्यवस्था से लोग ऊब गये थे । ऐसे में बौद्ध धर्म में जनता के सामने अत्यन्त सरल एवं आडम्बर रहित धर्म का विधान पेश किया । जिसमें किसी पंडित-पुरोहित की आवश्यकता नहीं थी और यह जाति वर्ग से रहित कोई भेदभाव नहीं था समाज के उपेक्षित वर्ग ने उत्साहपूर्वक इसे स्वीकार किया।
3. बौद्ध धर्म के प्रसार में राजकीय संरक्षण का महत्वपूर्ण योगदान रहा । स्वयं बुद्ध एवं उनके बाद भी अनेक राजाओं ने संरक्षण व प्रचार किया जिसमें बिम्बसार, अजातशत्रु, अशोक , कनिष्क, हर्षवर्धन शामिल हैं । अशोक ने तो इस धर्म को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्रदान कराई जिसमें मध्य एशिया, चीन, श्रीलंका, कोरिया, जापान एवं दक्षिण पूर्व एशिया एवं यूनानी राजाओं में में भी धर्म का प्रसार कराया।
4. ऐसे में बौद्ध धर्म वैश्य वर्ग को प्रोत्साहन देता था। साथ ही समुद्र व्यापार के भी अनुकूल था । जिससे वैश्यवर्ग (व्यापारी वर्ग) का झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हुआ और बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया जिसमें अनाथ पिण्डक, यश जैसे श्रेष्ठिन ने अगाध श्रद्धा प्रकट की । साथ ही बौद्ध धर्म में अहिंसा को आधार बनाया इसका लाभ भी व्यापारियों को हुआ , क्योंकि लड़ाई अथवा संघर्ष की स्थिति में सर्वाधिक नुकसान व्यापारी वर्ग को होता था और धनाड्य वर्ग को ऐसे नियमों तथा सिद्धांतों की आवश्यकता थी जो व्यक्तिगत संपत्ति की सुरक्षा करे तथा संपत्ति के अधिकार की रक्षा करे ऐसे में बौद्ध धर्म इस वर्ग के अनुकूल था ।
संपत्ति के अधिकार की रक्षा का बौद्ध धर्म अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देता था जिसमें अस्तेय (चोरी न करना) की भूमिका थी साथ ही बौद्ध धर्म ऋण एवं ब्याज लेन-देन का समर्थन करता था जिसका उल्लेख आपस्तम्ब तथा बौधायन धर्मसूत्र में मिलता है । इस तरह बौद्ध धर्म वैश्य वर्ग और इन सभी कारकों ने बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया।
5. बौद्ध शिक्षा में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की बजाय जिस तरह अच्छे आचरण और मूल्य को महत्व दिया गया उससे महिलाएं एवं पुरुष इस धर्म की तरफ आकर्षित हुए । खुद से छोटे और कमजोर लोगों की तरफ मित्रता और करुणा के भाव को महत्व देने के आदर्श काफी लोगों को पसंद आए |
बौद्ध धर्म की देन / योगदान :-
भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों के निर्माण एवं विकास में बौद्ध धर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है । जैसे -बौद्ध धर्म ने ही सर्वप्रथम भारतीयों को एक सरल तथा आडम्बर रहित धर्म प्रदान किया जिसका सभी (राजा-रंक, ऊँच-नीच) अनुसरण कर सकते थे ।
इन्होंने अहिंसा एवं सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया इसका प्रभाव अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि राजाओं में देखने को मिलता है । अशोक ने युद्ध विजय की नीति का परित्याग करके धम्म विजय की नीति को अपनाया तथा लोककल्याणकारी राजा का आदर्श विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया जो बौद्ध धर्म का ही परिणाम था।
बौद्ध धर्म ने लोगों के जीवन का नैतिक स्तर ऊँचा उठाने में जन-जीवन में सदाचार एवं सच्चरिता की भावनाओं का विकास करने, मानव जाति में समानता का आदर्श महत्वपूर्ण योगदान दिया । बुद्ध ने न केवल भारत अपितु विश्व के देशों में अहिंसा, शांति, बंधुत्व, सहअस्तित्व, करूणा, दया का आदर्श, विभिन्न संदेश आदि इससे विश्व पर भारत का नैतिक अधिपत्य स्थापित हुआ।
बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत की संस्कृति संपूर्ण विश्व के विभिन्न भागों में स्थापित हई । बौद्ध भिच्छुओं ने विश्व के विभिन्न भागों में जाकर बौद्ध सिद्धांतों का प्रसार किया । महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से आकर्षित होकर शक, पार्थियन, कुषाण, यवन ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। अनेक बौद्धयात्री बौद्ध धर्म का अध्ययन करने , बौद्ध स्तूप देखने (fhyaqan, ह्वेनसांग, इत्सिग) भारत आये तथा रूककर ज्ञान प्राप्त किया।
बौद्ध धर्म के उपदेश एवं सिद्धांत पालि भाषा में लिखे गये, जिससे पालि भाषा एवं साहित्य का विकास हुआ। बौद्ध धर्म में संघ की शासन व्यवस्था जनतांत्रिक प्रणाली पर आधारित थी जिसे हिन्दू मठों एवं विभिन्न राजशासन ने ग्रहण की। इसी प्रकार बौद्ध धर्म का भारतीय दर्शन पर भी प्रभाव पड़ा बौद्ध दर्शन के शून्यवाद, विज्ञानवाद की दार्शनिक पद्धतियों का प्रभाव शंकराचार्य के दर्शन पर भी पड़ा इसी कारण इन्हें प्रच्छन्न बौद्ध कहा जाता है।
बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण योगदान भारतीय कला एवं स्थापत्य के विकास में भी था । इस धर्म से प्रेरणा लेकर अनेक शासकों, श्रद्धालुओं ने स्तूप, विहार, चैत्यगृह, गुहाऐं, मूर्तियों आदि का निर्माण कराया तथा भारतीय कला को समृद्धशाली बनाया जिसमें सॉंची, सारनाथ, भरहुत के स्तूप, अजन्ता की गुफा एवं चित्रकारी, गंधार, मथुरा, कार्ले भाजा आदि स्थान पर बुद्ध एवं बोधिसत्व की मूर्ति व मूर्तिकला केन्द्र थे। गांधार कला के अंतर्गत सर्वाधिक महात्मा बुद्ध की मूर्तियॉं बनी, भारत के कुछ स्थानों पर आज भी स्मारक विद्यमान है, जो बौद्ध श्रद्धालुओं के आकर्षण के केन्द्र हैं।
बुद्ध के आदर्श एवं सिद्धांत आज के इस वैज्ञानिक युग में अपनी मान्यता बनाये हुये हैं तथा विश्व के विभिन्न देश उनको कार्यान्वित करते हैं भारत ने बौद्ध प्रतीकों को अपने राज चिन्हों के रूप में ग्रहण किया है तथा वह शान्ति सह अस्तित्व के सिद्धांतों का पिण्ड बना हुआ है। और पंचशील का सिद्धांत बौद्ध धर्म की ही देन है। आधुनिक संघर्ष शील अफगानिस्तान, सीरिया ,रूस -युक्रेन और पूरे वैश्विक युग में यदि हम बुद्ध के सिद्धांतों का अनुकरण करें तो निसंदेह शांति एवं सद्भाव स्थापित हो सकता है।
By: Sukhveer Singh
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