अकबर एक राष्ट्रीय शासक के रूप में


अकबर का जन्म अमरकोट के राजा बीरसाल के महल में 1542 में हुआ था । जिस समय हुमायूं की मृत्यु हुई उस समय अकबर कलानौर (पंजाब ) में था, वहीं पर 1556 में 13 साल 4 माह की छोटी सी आयु में इसका राज्य अभिषेक हुआ । अकबर ने एक छोटी सी उम्र में मुगलों की विरासत का कांटो भरा ताज अनेक चुनौतियों के साथ संभाला और इन चुनोतियों ने  अकबर को एक राष्ट्रीय शासक के रूप में स्थापित किया जिससे अकबर मध्यकालीन इतिहास में एक महान शासक के रूप में प्रसिद्ध हुआ । अनेक इतिहासकर अकबर को एक राष्ट्रीय सम्राट के रूप में मानते हैं क्या अकबर सच में राष्ट्रीय सम्राट था ? आइये देखते है  उसके कार्यो और उसकी नीतियों के आलोक में —

अकबर का शासन काल अत्यंत रचनात्मक काल रहा । इसने न केवल राजनीतिक प्रशासनिक और भौगोलिक एकता की स्थापना की बल्कि उसने सांस्कृतिक क्षेत्र में भी एकीकरण किया क्योंकि राजनीतिक एकीकरण को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए अत्यंत आवश्यक था । अकबर ने किसी एक सांस्कृतिक परंपरा को अन्य पर आरोपित होने का प्रयास नहीं किया बल्कि इस उपमहाद्वीप की भिन्न-भिन्न परंपराओं को साथ साथ उन्नत और विकसित होने का अवसर प्रदान किया तथा विविधता में एकता के उस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहा जो भारत की एकता का मूल आधार है ।



अकबर ने भारत में हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के बीच समन्वय स्थापित करने की कोशिश की । जहां एक ओर भारत की अपनी सांस्कृतिक परंपरा थी और दूसरी और एक नई सांस्कृतिक परंपरा थी जिसमें इस्लामी एवं ईरानी विशेषताएं शामिल थी । इन दोनों का समावेश भारत में अकबर के शासन काल में संपन्न हुआ जिसका प्रभाव सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ा जो मुख्य रूप से स्थापत्य कला , संगीत एवं चित्रकला एवं साहित्य के क्षेत्र में भी अकबर ने भारतीय रचनाओं का फारसी भाषा में अनुवाद कराया जिससे भारत की समृद्ध साहित्यिक परंपरा से विदेशी मुसलमान परिचित हुए ।



इसके शासनकाल में भवनों का निर्माण भी व्यापक रूप से हुआ । इसमें राजधानी आगरा और फतेहपुर सीकरी के अतिरिक्त लाहौर ,इलाहाबाद, अंबेर में बड़े पैमाने पर भवनों का निर्माण कराया । इसके काल की अंतिम उपलब्धि आगरा के समीप सिकंदरा स्थित अकबर का मकबरा है जिसका मूलाधार ईरानी शैली से प्रभावित है किंतु जिसका निर्मित रूप और अलंकार भारतीय शैली का उदाहरण है ।


इसके काल में अधिक उपलब्धियां चित्रकला के क्षेत्र में भी देखी जा सकती हैं जिसमें ईरानी एवं भारतीय शैलियों का समावेश मिलता है । ईरानी चित्रकला एवं भारतीय चित्रकला एक दूसरे से बहुत भिन्न थी । भारत में अधिकतर धार्मिक विषयों का चित्रण होता था । अकबर ने ईरानी परंपरा के विषयों को चुना । चित्र शैली में शासक वर्ग के जीवन का चित्रण किया गया किंतु उसका प्रस्तुतीकरण पूर्ण रूप से भारतीय था, इसमें रंगों का उपयोग, ब्रश का उपयोग, व्यक्तियों के रंग-रूप, प्राकृतिक दृश्य भारतीय थे, ना कि ईरानी ।  इस प्रकार अकबर के शासनकाल में एक ऐसे चित्रकला का विकास हुआ जिसकी आत्मा ईरानी थी और शरीर भारतीय । अकबर ने अपने दरबार में बड़ी संख्या में चित्रकारों को इकट्ठा किया ,चित्र बनाने के लिए शाही चित्रशाला की स्थापना करवाई ।


संगीत के क्षेत्र में भी अकबर ने दरबार में ईरानी और भारतीय परंपरा का समावेश किया । वैसे तो सल्तनत काल में भी भारतीय,ईरानी संगीत आपस में एक दूसरे के संपर्क में आए लेकिन इसके समय इसकी व्यापकता देखने को मिलती है। अकबर पहला शासक था जिसने संगीत को दरबारी क्रियाकलाप का अभिन्न अंग बना दिया। उसके दरबार में अनेक विद्वान संगीतज्ञ थे जिनकी पूरी सूची आईन-ए-अकबरी में उपलब्ध हैं । इनमें एक प्रसिद्ध नाम तानसेन का है । कहा जाता है कि अमीर खुसरो द्वारा ईरानी और भारतीय संगीत के समन्वय का जो प्रयास प्रारंभ किया गया वह तानसेन  के साथ परिपूर्ण हो गया और नई राग,रागिनीयाँ प्रचलित है जो न पूरी तरह से ईरानी थे और न पूरी तरह से भारतीय ।  



अकबर के समय साहित्य के चित्र में भी विशेष महत्वपूर्ण योगदान था इसके काल में फारसी भाषा और साहित्य का अत्यधिक विकास हुआ यहां तक कि भारत में फारसी रचनाएं ईरान की फारसी रचनाएं से अधिक उत्कृष्ट स्तर पर पहुंच गई थी ।अकबर ने हीं दरबार इतिहास लेखन की परंपरा को भारत में स्थापित किया । अबुल फजल उसके दरबार के प्रसिद्ध इतिहासकार थे जिन्होंने अकबरनामा , आईन-ए-अकबरी जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, निजामुद्दीन की तबकात ए अकबरी और बदायूं ने की मुंतखव उल तवारिकी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रचनाएं थी । इसी के साथ काव्य  में एक अन्य नाम फैजी का महत्वपूर्ण है जिन्होंने भगवत गीता का अनुवाद किया इसी प्रकार बाबर की आत्मकथा तुजुक ए बाबरी का जो टर्की भाषा में थी, उसका फारसी में अनुवाद अब्दुल रहीम खानखाना ने बाबरनामा के नाम से किया ।


हिंदी भाषा और साहित्य के दृष्टिकोण से भी अकबर का शासन काल महत्वपूर्ण है । इसके काल में प्रसिद्ध व्यक्ति तुलसीदास जिनकी रचना रामचरितमानस है । हालांकि इनका अकबर के दरबार से कोई संबंध नहीं था फिर भी अकबर के शासन काल की उदार परंपरा ने हिंदी भाषा के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण बनाया । अकबर के दरबार में भी हिंदी के कुछ प्रसिद्ध कवियों को प्रश्रय मिला जिसमें महत्वपूर्ण नाम अब्दुल रहीम खाने खाना का है । हिंदुओं द्वारा भी फारसी भाषा के अध्ययन की प्रवृत्ति इस काल में बड़ी तथा कुछ ने प्रशासनिक पदों को प्राप्त किया बाद में हिंदुओं ने फारसी भाषा के उत्कृष्ट ग्रंथों की भी रचना की ।

इस प्रकार कहा जा सकता है अकबर का शासन काल सांस्कृतिक जीवन में उल्लेखनीय प्रगति का काल है। अकबर ने राष्ट्रीय एकीकरण की जो नीति अपनाई उसके फलस्वरूप यह अनिवार्य हो गया कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक समन्वय परंपरा का विकास किया जाए । इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अकबर ने स्थापत्य कला, संगीत, के क्षेत्र में संबंधित परंपरा के विकास की नीति अपनाई । इसकी एक सबसे बड़ी उपलब्धि सामाजिक साझा संस्कृति के संदर्भ में थी, क्योंकि उस समय जब सारा यूरोप कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट संप्रदायों के बीच धार्मिक विवाद से पीड़ित था अकबर ने भारत में सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता, सद्भाव और सम्मान की नीति अपनाई जिसे सुलह-ए -कुल कहा जाता है।

इसमें कट्टरपंथियों के प्रभाव को समाप्त कर उदारता और सहिष्णुता को आधार बनाया । इसी नीति के तहत इसने  जजिया, यात्रा कर और बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करने को समाप्त किया । इसने राजपूतों को अपना मित्र बनाया और उन्हें कुछ सुविधाएं देकर उनका सहयोग प्राप्त किया,



कुछ राजपूत शासकों के साथ उसने युद्ध भी किए, लेकिन इसके पीछे धार्मिक कटुता की भावना नहीं थी । उसने पराजित राजपूत शासकों पर कोई अत्याचार नहीं किया और न ही उन्हें अपमानित करने की कोशिश की । इसने कुछ राजपूत घरानों के साथ वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए और राजपूत पत्नियों को धार्मिक स्वतंत्रता और पूरा सम्मान दिया । इसके द्वारा स्थापित एकता, शांति और सुव्यवस्था ने आर्थिक विकास और सांस्कृतिक प्रगति को संभव बनाया और एक साझा संस्कृति के विकास का मार्ग प्रशस्त किया । नि:संदेह  इस आधार पर अकबर को एक राष्ट्रीय सम्राट माना जा सकता है ।



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